बहुचर्चित रियलिटी टीवी शो 'राहुल दुल्हनियां ले जाएंगे..’ में राहुल ने कोलकाता की डिंपी गांगुली को अपनी दुल्हन चुन लिया। मॉडल और डांसर डिंपी ने हरप्रीत और निकुंज को मात देकर इस शो में जीत हासिल की। मुंबई में आयोजित एक भव्य समारोह के दौरान 34 वर्षीय राहुल महाजन ने 21 वर्षीय डिंपी को अंगूठी पहनाई।
हालांकि शो के नतीजों का ऐलान होने से पहले यह करीब-करीब साफ हो गया था कि बाजी डिंपी के ही हाथ लगेगी और वही हुआ। यह भी कहा जा रहा था कि फरीदाबाद की निकुंज मलिक से भी राहुल की काफी नजदीकियां थीं। राहुल महाजन कुछ समय पहले काफी मुसीबतों में घिरे हुए थे। ड्रग मामले और शादी टूटने को लेकर चर्चा में आए राहुल को भरोसा है कि अब उनकी जिंदगी खुशगवार होगी।
हालांकि इस शादी के होने और न होने को लेकर कई कयास लगाए जा हरे थे, क्यों कि हाल ही में राहुल के चाचा और उनके पापा प्रमोद महाजन के हत्यारे प्रवीण महाजन की मौत हो गई। पर राहुल अपने शादी के फैसले पर डटे रहे। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किसी के परिवार में मौत हो जाए तो शुभ कार्य नहीं किया जाता। पर राहुल के घर वालों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
इससे पहले राहुल की पूर्व पत्नी श्वेता ने भी यह कहकर सबको चौंका दिया कि राहुल फिर उनसे विवाह करना चाहते हैं। श्वेता ने यहां तक कहा कि इस शो में भाग लेने के लिए उनको मुंह मांगी रकम देने की बात भी कही गई। एक तरह से इस शादी में कई रुकावटें भी सामने आई! तो देखते है एक रियलिटी टीवी शो के जरिए हुई इस रियल शादी का क्या अंजाम होता है। मैं तो नव दंपति को शुभकामनाएं देने के साथ ही उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
गुलाबी शहर
रविवार, 7 मार्च 2010
रविवार, 4 अक्टूबर 2009
विरोध का तरीका ऐसा?
विरोध जताने के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हंै। मांग मनवाने का अब लोकतंत्र में सिर्फ एक ही तरीका रह गया है, विरोध प्रदर्शन करो, कानून-व्यवस्था को हाथ में लो। जमकर उत्पात मचाओ। आज भी यह धारणा बनी हुई है कि यदि आपके पास भीड़ की ताकत है तो आप किसी भी सत्ता या ताकत को झुका सकते हंै।
हाल ही में एक रेलवे स्टेशन को खत्म किए जाने के विरोध में हाथरस में भीड़ ने पहले पुलिस पर पथराव किया और बाद में महानंदा एक्सप्रेस की 11 बोगियों को आग के हवाले कर दिया। इससे एक दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली के खजूरी खास इलाके में सरकारी स्कूल में हुई भगदड़ में छात्राओं की मौत के मामले में कार्रवाई न होने से नाराज लोगों ने एक डीटीसी की बस को फूंक डाला। पिछले दिनों गाजियाबाद में भी अवैध रूप से बसाई गई बस्तियों को चिन्ह्ति किए जाने के विराधे में लोगों ने चक्का जाम किया, पुलिस पर पथराव किया और कई वाहनों में आग लगा दी । इस तरह की घटनाओं की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
आश्चर्य तो इस बात का है कि इस तरह की घटनाएं पुलिस के सामने होती हैं। यह बात ठीक है इस तरह की घटनाएं आम आदमी की नाराजगी का नतीजा होती है, लेकिन अपने हित साधने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना कहां तक जायज है। आखिर यह संपत्ति किसी दूसरे की थोड़ी है। यह अपनी ही तो है। तो इसको नुकसान पहुंचाना सही है। मैं तो इसे सही नहीं मानता। तो क्या आपकी नजर में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर मांग मनवाने का तरीका सही है?
(SANTOSH KUMAR TRIVEDI)
बुधवार, 29 जुलाई 2009
जयपुर की पूर्व राजमाता का निधन
शाही शानोशौकत का जीवंत प्रतीक रही जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी आज हम सबको छोड़कर हमेशा के लिए चली गई। अपनी युवावस्था में दुनिया की दस खूबसूरत महिलाओं में निनी जाने वाली गायत्री देवी का लंबी बीमारी के बाद 90 साल की उम्र में देहांत हो गया। कूच बिहार के पूर्व राजवंश की राजकुमारी गायत्री देवी ने जयपुर की रियासत के आखिरी राजा सवाई मानसिंह द्वितीय से विवाह किया और वो तत्कालीन महाराजा की तीसरी महारानी के रू प में जयपुर आई। गायत्री देवी के निधन पर सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई हस्तियों ने शोक जताया है।
लंदन में जन्मी गायत्री देवी की प्रारंभिक शिक्षा शान्ति निकेतन में हुई। बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड के लाजेन में अध्ययन किया। उनका राजघराना अन्य राजघरानों से कहीं अधिक समृद्धशाली था। गायत्री देवी ने 15 अक्तूबर 1949 को पुत्र जगत सिंह को जन्म दिया। महारानी गायत्री देवी को बाद में राजमाता की उपाधि दी गई। जगत सिंह का कुछ साल पहले ही निधन हो गया था। जगत सिंह जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह के सौतेले भाई थे। गायत्री देवी की शुरू से ही लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने में रुचि रही यही कारण रहा कि गायत्री देवी ने गायत्री देवी गल्र्स पब्लिक स्कूल की शुरूआत की। इस स्कूल की गणना जयपुर के सर्वोत्तम स्कूलों में आज भी है। पूर्व राजमाता ने जयपुर की 'ब्लू पोटरी ’ कला को भी जमकर बढ़ावा दिया।
गायत्री देवी 1939 से 1970 के बीच जयपुर की तीसरी महारानी थीं। वह अपने अप्रतिम सौन्दर्य के लिए जानी जाती थीं। वह एक सफल राजनीतिज्ञ भी रहीं। वह अपने समय की फैशन आइकन मानी जाती थीं। राजघरानों के भारतीय गणरा’य में विलय के बाद गायत्री देवी राजनीति में आईं और जयपुर से 1962 में मतों के भारी अंतर से लोकसभा चुनाव जीता। गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को लंदन में हुआ था। पूर्व महारानी ने सुंदरता की दौड़ में अव्वल रहने के साथ साथ राजनीति क्षेत्र में भी अपना परचम लहराया और वर्ष 1967 और 1961 में भी उन्होंने जयपुर से लोकसभा सीट पर भारी मतों से जीत अर्जित की।
शनिवार, 25 जुलाई 2009
बचपन से खिलवाड़ क्यों?
हम बच्चों से उनका बचपन क्यों छीन रहे हैं? फिल्म व टीवी संस्कृति हमारे बच्चों को समय से पहले ही वयस्क बना रही है। आए दिन चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में बच्चों से हास्य के नाम पर फूहड़ बातें सुनने को मिलती हैं। आठ-नौ साल का बच्चा माता-पिता के संबंधों पर व्यंग्य प्रस्तुत करता है और पेरेंट्स दर्शक दीर्घा में बैठकर प्रसन्न होते रहते हैं। क्या वह बच्चा इन सब बातों को समझता है? यहीं नहीं, डांस कार्यक्रमों में भी बच्चे अश्लील पोशाकें पहनकर अश्लील डांस करते हैं और जज से लेकर दर्शक तक उनकी तारीफ करते हैं। माना, बच्चों में प्रतिभा है, पर उसका इस तरह से उपयोग समझ नहीं आता। क्या यह सब कुछ सही हो रहा है मेरी राय से तो इसका बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
अभी कुछ दिन पहले ही एक चैनल पर किसी कार्यक्रम में अपना टैलेंट दिखाने के लिए आठ साल की बच्ची फिल्मी आइटम डांसरों जैसा डांस कर रही थी। एक सात साल का बच्चा तांत्रिक द्वारा किए जाने वाले वीभत्स कृत्यों को अपने डांस द्वारा दर्शा रहा था। मुझे तसल्ली हुई कि इस कार्यक्रम के जजों ने अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाया और बच्चों की प्रतिभा को बिना नकारे हुए, उनके द्वारा किए जाने वाले अश्लील व वीभत्स कृत्यों के लिए उनके माता-पिता को उनकी जिम्मेदारी का अहसास करवाया।
मुझे तो उन पेरेंट्स पर दया आई, जो थोड़ी-सी प्रसिद्धि पाने के लिए अपने अबोध बच्चों से कुछ भी करवाने के लिए तैयार थे। आज बच्चों पर वैसे भी पढ़ाई और प्रतियोगिता का इतना प्रेशर है कि उनकी कुंठाओं की झलकियां बोर्ड रिजल्ट्स आते ही आत्महत्या की खबरों के रूप में अखबार में पढऩे को मिल जाती हं। बच्चों के बचपन को अपनी आकांक्षाओं के बोझ तले दबाने से बेहतर है कि उन्हें उनका बचपन अभिभावक पूरी स्वतंत्रता से जीने दें।
अभी कुछ दिन पहले ही एक चैनल पर किसी कार्यक्रम में अपना टैलेंट दिखाने के लिए आठ साल की बच्ची फिल्मी आइटम डांसरों जैसा डांस कर रही थी। एक सात साल का बच्चा तांत्रिक द्वारा किए जाने वाले वीभत्स कृत्यों को अपने डांस द्वारा दर्शा रहा था। मुझे तसल्ली हुई कि इस कार्यक्रम के जजों ने अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाया और बच्चों की प्रतिभा को बिना नकारे हुए, उनके द्वारा किए जाने वाले अश्लील व वीभत्स कृत्यों के लिए उनके माता-पिता को उनकी जिम्मेदारी का अहसास करवाया।
मुझे तो उन पेरेंट्स पर दया आई, जो थोड़ी-सी प्रसिद्धि पाने के लिए अपने अबोध बच्चों से कुछ भी करवाने के लिए तैयार थे। आज बच्चों पर वैसे भी पढ़ाई और प्रतियोगिता का इतना प्रेशर है कि उनकी कुंठाओं की झलकियां बोर्ड रिजल्ट्स आते ही आत्महत्या की खबरों के रूप में अखबार में पढऩे को मिल जाती हं। बच्चों के बचपन को अपनी आकांक्षाओं के बोझ तले दबाने से बेहतर है कि उन्हें उनका बचपन अभिभावक पूरी स्वतंत्रता से जीने दें।
रविवार, 12 अप्रैल 2009
सियासत में सब जायज!
कहा जाता है प्रेम और जंग में सब कुछ जायज है। लेकिन अब राजनीति भी इसमें शामिल हो गई है। यहीं कारण है कि वोट की राजनीति के लिए नेता आज हर तरह के हथकंडे अपना रहे है। कुछ भी बको बस अखबार के पहले पन्ने पर और चैनल के प्रमुख समाचारों में तवज्जो मिल जाए। इन नेताओं की जीभ इतनी कड़वी हो गई है कि आजकल इनके मुंह से शब्दों की जगह जहर निकलने लगा है। हो सकता है ये नेता ऐसा उल-जुलूल बयान किसी विशेष संप्रदाय के वोट पाने की खातिर अपना रहे हो, लेकिन यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत की घातक है और आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। एक तरफ जहां वरुण गांधी ने सांप्रदायिक भाषण दिया, तो दूसरी ओर राबड़ी देवी ने एक मुख्यमंत्री के लिए इतने भद्दे शब्दों का प्रयोग किया। क्या एक पूर्व मुख्यमंत्री के लिए किसी सीएम के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग उचित है? खैर मैं तो इससे सहमत नहीं हूं। हमारे देश में ऐसे बयाने देने वाले नेताओं की एक फौज सी खड़ी हो गई है। जिस तरह लालू प्रसाद यादव ने वरुण गांधी को रोलर के नीचे कुचलने का कथित भाषण दिया उससे आप सोच सकते है कि हमारे देश के नेताओं की कैसी सोच है। सब कुछ सिर्फ वोट के लिए कुछ भी बको छूट जो मिली है! बात यहां तक आ गई है कि नेता एक दूसरे के निजी जीवन पर भी टिप्पणी करने से नहीं चूक रहे है। अगर हमारे देश में ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन इसके बहुत बुरे परिणाम सामने आएंगे।
शनिवार, 7 मार्च 2009
हैप्पी होली
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं। होली करीब आते ही मन में रंगों की होली शुरू हो जाती है। मन करता है सबकों होली के रंग में रंग डालें। होली ही एक ऐसा त्यौहार होता है जिस दिन दोस्त और दुश्मन सभी पर रंग डाला जाता है। होली के करीब आते ही बच्चों में एक अलग सा उत्साह नजर आता है। स्कूल में ही छात्र कलम की स्याही अपने-अपने दोस्तों के कपड़ों पर डालने लग जाते हैं कुछ बच्चे रंग डालते है। मैं या आप ने भी शायद बचपन में ऐसा किया हेागा। सच में बचपन में होली खेलने में बहुत मजा आता था। होली ख्ेालने के लिए ना नुकूर करता, लेकिन फिर मन करता कोई आ जाए और रंग डाल दे। बहुत लोग ऐसे हैं जो झूठमूट होली खेलने के लिए मना करते हैं लेकिन उनका मन होली खेलने के लिए लालायित रहता है। और जैसी उन्हें कोई थोड़ा सा रंग लगा देता है वे होली के रंग में सराबोर हो जाते हैं। होली को बिछड़े यारों से मिलने का मौका भी मिलता है। क्यों कि सभी होली के दिन अपने-अपने घर आते हैं। बहुत अच्छा लगता है सभी से मिलकर। लेकिन बात जब रंगों की हो तो इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है कि रंग खुशियों के हों। इसलिए होली खेलते समय सावधानी जरूर बरतें। रंग और गुलालों में प्रयोग किए जाने वाले केमिकल्स आपकी त्वचा पर बुरा असर डालते हैं। असर इतना गहरा होता है कि वे पूरी जिंदगी के लिए नासूर हो जाते है। यदि ये केमिकल युक्त रंग गलती से आंखों में चले जाए तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है। इसलिए सही रहेगा की आप रंगो की बजाय हल्के गुलाल से होली खेले। रंग से मुंह रगडऩे की बजाय प्रेम से चुटकी भर गुलाल गाल पर लगाएं। तो एक बार फिर हैप्पी होली..........
मंगलवार, 3 मार्च 2009
कब सुधरेगा पाकिस्तान?
भारतीय उप महाद्वीप की जनता का जुनून कहा जाने वाला क्रिकेट आतंककारी हमले का निशाना बन गया। म्यूनिख ओलम्पिक (१९७२) के बाद दुनिया के इतिहास में दूसरी बार आतंककारियों ने खिलाडिय़ों को निशाना बनाया। लाहौर मेंदूसरे टेस्ट मैच के तीसरे दिन का खेल शुरू करने के लिए गद्दाफी स्टेडियम जा रहे श्रीलंकाई क्रिकेट टीम की बस पर करीब १२ अज्ञात नकाबपोश बंदूकधारियों ने ए.के. राइफलों, हैण्डग्र्रेनेड और राकेट लांचरों से हमला किया। हमले में छह खिलाड़ी और सहायक कोच, एक रिजर्व अम्पायर घायल हो गए। आतंककारियों की गोलियों से छह सुरक्षा कर्मी व एक बस चालक मारे गए। श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमले से खेल जगत स्तब्ध रह गया।
उधर, हमलावरों को पकडऩे में विफल रहे पाक सुरक्षा तंत्र ने ४ संदिग्धों को हिरासत में लिया है। लेकिन किसी भी आतंकी को पकडऩे में पाक नाकाम रहा। श्रीलंकाई क्रिकेटरों को ले जाती बस को अचानक निशाना बनाकर हिंसा और दहशत के सौदागरों ने साफ कर दिया है कि वे संबंधों और संस्कृतियों को बढ़ावा देनेवाली किसी भी पहल के दुश्मन हैं। लाहौर हमले से पाकिस्तान क्रिकेट को जो विराट क्षति पहुंचने वाली है, वह समूचे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए चिंताजनक होनी चाहिए। अगर इस उपमहाद्वीप में क्रिकेट लडख़ड़ा गया, तो ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसी कथित क्रिकेट महाशक्तियां भी उसे नवजीवन नहीं दे पाएंगी।
पर विडंबना देखिए कि ऐसी किसी साजिश को निर्मूल करने की प्रतिबद्धता जताने के बजाय पाकिस्तान भारत पर आरोप लगा रहा है। पाक के इस तरह के गैर जिम्मेदार रवैये से एक प्रश्न उठता है कि आखिर पाकिस्तान कब सुधरेगाï? पाकिस्तान ने मुंबई हमले में भी इसी तरह का रवैया अपनाया और अनाप-सनाप बेहुदे बयान देता रहा। शायद पाकिस्तान में बयान देना तो मामूली बात हो गई है कुछ भी बक दो। यदि पाकिस्तान समय रहते नहीं सुधरा तो एक दिन वह ऐसे रास्ते पर खड़ा होगा जहां एक तरफ कुआ और एक तरफ खाई होगी।
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