रविवार, 4 अक्टूबर 2009

विरोध का तरीका ऐसा?


विरोध जताने के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हंै। मांग मनवाने का अब लोकतंत्र में सिर्फ एक ही तरीका रह गया है, विरोध प्रदर्शन करो, कानून-व्यवस्था को हाथ में लो। जमकर उत्पात मचाओ। आज भी यह धारणा बनी हुई है कि यदि आपके पास भीड़ की ताकत है तो आप किसी भी सत्ता या ताकत को झुका सकते हंै।
हाल ही में एक रेलवे स्टेशन को खत्म किए जाने के विरोध में हाथरस में भीड़ ने पहले पुलिस पर पथराव किया और बाद में महानंदा एक्सप्रेस की 11 बोगियों को आग के हवाले कर दिया। इससे एक दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली के खजूरी खास इलाके में सरकारी स्कूल में हुई भगदड़ में छात्राओं की मौत के मामले में कार्रवाई न होने से नाराज लोगों ने एक डीटीसी की बस को फूंक डाला। पिछले दिनों गाजियाबाद में भी अवैध रूप से बसाई गई बस्तियों को चिन्ह्ति किए जाने के विराधे में लोगों ने चक्का जाम किया, पुलिस पर पथराव किया और कई वाहनों में आग लगा दी । इस तरह की घटनाओं की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
आश्चर्य तो इस बात का है कि इस तरह की घटनाएं पुलिस के सामने होती हैं। यह बात ठीक है इस तरह की घटनाएं आम आदमी की नाराजगी का नतीजा होती है, लेकिन अपने हित साधने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना कहां तक जायज है। आखिर यह संपत्ति किसी दूसरे की थोड़ी है। यह अपनी ही तो है। तो इसको नुकसान पहुंचाना सही है। मैं तो इसे सही नहीं मानता। तो क्या आपकी नजर में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर मांग मनवाने का तरीका सही है?

(SANTOSH KUMAR TRIVEDI)

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