रविवार, 4 अक्तूबर 2009

विरोध का तरीका ऐसा?


विरोध जताने के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हंै। मांग मनवाने का अब लोकतंत्र में सिर्फ एक ही तरीका रह गया है, विरोध प्रदर्शन करो, कानून-व्यवस्था को हाथ में लो। जमकर उत्पात मचाओ। आज भी यह धारणा बनी हुई है कि यदि आपके पास भीड़ की ताकत है तो आप किसी भी सत्ता या ताकत को झुका सकते हंै।
हाल ही में एक रेलवे स्टेशन को खत्म किए जाने के विरोध में हाथरस में भीड़ ने पहले पुलिस पर पथराव किया और बाद में महानंदा एक्सप्रेस की 11 बोगियों को आग के हवाले कर दिया। इससे एक दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली के खजूरी खास इलाके में सरकारी स्कूल में हुई भगदड़ में छात्राओं की मौत के मामले में कार्रवाई न होने से नाराज लोगों ने एक डीटीसी की बस को फूंक डाला। पिछले दिनों गाजियाबाद में भी अवैध रूप से बसाई गई बस्तियों को चिन्ह्ति किए जाने के विराधे में लोगों ने चक्का जाम किया, पुलिस पर पथराव किया और कई वाहनों में आग लगा दी । इस तरह की घटनाओं की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
आश्चर्य तो इस बात का है कि इस तरह की घटनाएं पुलिस के सामने होती हैं। यह बात ठीक है इस तरह की घटनाएं आम आदमी की नाराजगी का नतीजा होती है, लेकिन अपने हित साधने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना कहां तक जायज है। आखिर यह संपत्ति किसी दूसरे की थोड़ी है। यह अपनी ही तो है। तो इसको नुकसान पहुंचाना सही है। मैं तो इसे सही नहीं मानता। तो क्या आपकी नजर में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर मांग मनवाने का तरीका सही है?

(SANTOSH KUMAR TRIVEDI)

बुधवार, 29 जुलाई 2009

जयपुर की पूर्व राजमाता का निधन


शाही शानोशौकत का जीवंत प्रतीक रही जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी आज हम सबको छोड़कर हमेशा के लिए चली गई। अपनी युवावस्था में दुनिया की दस खूबसूरत महिलाओं में निनी जाने वाली गायत्री देवी का लंबी बीमारी के बाद 90 साल की उम्र में देहांत हो गया। कूच बिहार के पूर्व राजवंश की राजकुमारी गायत्री देवी ने जयपुर की रियासत के आखिरी राजा सवाई मानसिंह द्वितीय से विवाह किया और वो तत्कालीन महाराजा की तीसरी महारानी के रू प में जयपुर आई। गायत्री देवी के निधन पर सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई हस्तियों ने शोक जताया है।

लंदन में जन्मी गायत्री देवी की प्रारंभिक शिक्षा शान्ति निकेतन में हुई। बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड के लाजेन में अध्ययन किया। उनका राजघराना अन्य राजघरानों से कहीं अधिक समृद्धशाली था। गायत्री देवी ने 15 अक्तूबर 1949 को पुत्र जगत सिंह को जन्म दिया। महारानी गायत्री देवी को बाद में राजमाता की उपाधि दी गई। जगत सिंह का कुछ साल पहले ही निधन हो गया था। जगत सिंह जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह के सौतेले भाई थे। गायत्री देवी की शुरू से ही लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने में रुचि रही यही कारण रहा कि गायत्री देवी ने गायत्री देवी गल्र्स पब्लिक स्कूल की शुरूआत की। इस स्कूल की गणना जयपुर के सर्वोत्तम स्कूलों में आज भी है। पूर्व राजमाता ने जयपुर की 'ब्लू पोटरी ’ कला को भी जमकर बढ़ावा दिया।

गायत्री देवी 1939 से 1970 के बीच जयपुर की तीसरी महारानी थीं। वह अपने अप्रतिम सौन्दर्य के लिए जानी जाती थीं। वह एक सफल राजनीतिज्ञ भी रहीं। वह अपने समय की फैशन आइकन मानी जाती थीं। राजघरानों के भारतीय गणरा’य में विलय के बाद गायत्री देवी राजनीति में आईं और जयपुर से 1962 में मतों के भारी अंतर से लोकसभा चुनाव जीता। गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को लंदन में हुआ था। पूर्व महारानी ने सुंदरता की दौड़ में अव्वल रहने के साथ साथ राजनीति क्षेत्र में भी अपना परचम लहराया और वर्ष 1967 और 1961 में भी उन्होंने जयपुर से लोकसभा सीट पर भारी मतों से जीत अर्जित की।

शनिवार, 25 जुलाई 2009

बचपन से खिलवाड़ क्यों?

हम बच्चों से उनका बचपन क्यों छीन रहे हैं? फिल्म व टीवी संस्कृति हमारे बच्चों को समय से पहले ही वयस्क बना रही है। आए दिन चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में बच्चों से हास्य के नाम पर फूहड़ बातें सुनने को मिलती हैं। आठ-नौ साल का बच्चा माता-पिता के संबंधों पर व्यंग्य प्रस्तुत करता है और पेरेंट्स दर्शक दीर्घा में बैठकर प्रसन्न होते रहते हैं। क्या वह बच्चा इन सब बातों को समझता है? यहीं नहीं, डांस कार्यक्रमों में भी बच्चे अश्लील पोशाकें पहनकर अश्लील डांस करते हैं और जज से लेकर दर्शक तक उनकी तारीफ करते हैं। माना, बच्चों में प्रतिभा है, पर उसका इस तरह से उपयोग समझ नहीं आता। क्या यह सब कुछ सही हो रहा है मेरी राय से तो इसका बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
अभी कुछ दिन पहले ही एक चैनल पर किसी कार्यक्रम में अपना टैलेंट दिखाने के लिए आठ साल की बच्ची फिल्मी आइटम डांसरों जैसा डांस कर रही थी। एक सात साल का बच्चा तांत्रिक द्वारा किए जाने वाले वीभत्स कृत्यों को अपने डांस द्वारा दर्शा रहा था। मुझे तसल्ली हुई कि इस कार्यक्रम के जजों ने अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाया और बच्चों की प्रतिभा को बिना नकारे हुए, उनके द्वारा किए जाने वाले अश्लील व वीभत्स कृत्यों के लिए उनके माता-पिता को उनकी जिम्मेदारी का अहसास करवाया।
मुझे तो उन पेरेंट्स पर दया आई, जो थोड़ी-सी प्रसिद्धि पाने के लिए अपने अबोध बच्चों से कुछ भी करवाने के लिए तैयार थे। आज बच्चों पर वैसे भी पढ़ाई और प्रतियोगिता का इतना प्रेशर है कि उनकी कुंठाओं की झलकियां बोर्ड रिजल्ट्स आते ही आत्महत्या की खबरों के रूप में अखबार में पढऩे को मिल जाती हं। बच्चों के बचपन को अपनी आकांक्षाओं के बोझ तले दबाने से बेहतर है कि उन्हें उनका बचपन अभिभावक पूरी स्वतंत्रता से जीने दें।

रविवार, 12 अप्रैल 2009

सियासत में सब जायज!

कहा जाता है प्रेम और जंग में सब कुछ जायज है। लेकिन अब राजनीति भी इसमें शामिल हो गई है। यहीं कारण है कि वोट की राजनीति के लिए नेता आज हर तरह के हथकंडे अपना रहे है। कुछ भी बको बस अखबार के पहले पन्ने पर और चैनल के प्रमुख समाचारों में तवज्जो मिल जाए। इन नेताओं की जीभ इतनी कड़वी हो गई है कि आजकल इनके मुंह से शब्दों की जगह जहर निकलने लगा है। हो सकता है ये नेता ऐसा उल-जुलूल बयान किसी विशेष संप्रदाय के वोट पाने की खातिर अपना रहे हो, लेकिन यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत की घातक है और आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। एक तरफ जहां वरुण गांधी ने सांप्रदायिक भाषण दिया, तो दूसरी ओर राबड़ी देवी ने एक मुख्यमंत्री के लिए इतने भद्दे शब्दों का प्रयोग किया। क्या एक पूर्व मुख्यमंत्री के लिए किसी सीएम के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग उचित है? खैर मैं तो इससे सहमत नहीं हूं। हमारे देश में ऐसे बयाने देने वाले नेताओं की एक फौज सी खड़ी हो गई है। जिस तरह लालू प्रसाद यादव ने वरुण गांधी को रोलर के नीचे कुचलने का कथित भाषण दिया उससे आप सोच सकते है कि हमारे देश के नेताओं की कैसी सोच है। सब कुछ सिर्फ वोट के लिए कुछ भी बको छूट जो मिली है! बात यहां तक आ गई है कि नेता एक दूसरे के निजी जीवन पर भी टिप्पणी करने से नहीं चूक रहे है। अगर हमारे देश में ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन इसके बहुत बुरे परिणाम सामने आएंगे।

शनिवार, 7 मार्च 2009

हैप्पी होली


आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं। होली करीब आते ही मन में रंगों की होली शुरू हो जाती है। मन करता है सबकों होली के रंग में रंग डालें। होली ही एक ऐसा त्यौहार होता है जिस दिन दोस्त और दुश्मन सभी पर रंग डाला जाता है। होली के करीब आते ही बच्चों में एक अलग सा उत्साह नजर आता है। स्कूल में ही छात्र कलम की स्याही अपने-अपने दोस्तों के कपड़ों पर डालने लग जाते हैं कुछ बच्चे रंग डालते है। मैं या आप ने भी शायद बचपन में ऐसा किया हेागा। सच में बचपन में होली खेलने में बहुत मजा आता था। होली ख्ेालने के लिए ना नुकूर करता, लेकिन फिर मन करता कोई आ जाए और रंग डाल दे। बहुत लोग ऐसे हैं जो झूठमूट होली खेलने के लिए मना करते हैं लेकिन उनका मन होली खेलने के लिए लालायित रहता है। और जैसी उन्हें कोई थोड़ा सा रंग लगा देता है वे होली के रंग में सराबोर हो जाते हैं। होली को बिछड़े यारों से मिलने का मौका भी मिलता है। क्यों कि सभी होली के दिन अपने-अपने घर आते हैं। बहुत अच्छा लगता है सभी से मिलकर। लेकिन बात जब रंगों की हो तो इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है कि रंग खुशियों के हों। इसलिए होली खेलते समय सावधानी जरूर बरतें। रंग और गुलालों में प्रयोग किए जाने वाले केमिकल्स आपकी त्वचा पर बुरा असर डालते हैं। असर इतना गहरा होता है कि वे पूरी जिंदगी के लिए नासूर हो जाते है। यदि ये केमिकल युक्त रंग गलती से आंखों में चले जाए तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है। इसलिए सही रहेगा की आप रंगो की बजाय हल्के गुलाल से होली खेले। रंग से मुंह रगडऩे की बजाय प्रेम से चुटकी भर गुलाल गाल पर लगाएं। तो एक बार फिर हैप्पी होली..........

मंगलवार, 3 मार्च 2009

कब सुधरेगा पाकिस्तान?


भारतीय उप महाद्वीप की जनता का जुनून कहा जाने वाला क्रिकेट आतंककारी हमले का निशाना बन गया। म्यूनिख ओलम्पिक (१९७२) के बाद दुनिया के इतिहास में दूसरी बार आतंककारियों ने खिलाडिय़ों को निशाना बनाया। लाहौर मेंदूसरे टेस्ट मैच के तीसरे दिन का खेल शुरू करने के लिए गद्दाफी स्टेडियम जा रहे श्रीलंकाई क्रिकेट टीम की बस पर करीब १२ अज्ञात नकाबपोश बंदूकधारियों ने ए.के. राइफलों, हैण्डग्र्रेनेड और राकेट लांचरों से हमला किया। हमले में छह खिलाड़ी और सहायक कोच, एक रिजर्व अम्पायर घायल हो गए। आतंककारियों की गोलियों से छह सुरक्षा कर्मी व एक बस चालक मारे गए। श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमले से खेल जगत स्तब्ध रह गया।
उधर, हमलावरों को पकडऩे में विफल रहे पाक सुरक्षा तंत्र ने ४ संदिग्धों को हिरासत में लिया है। लेकिन किसी भी आतंकी को पकडऩे में पाक नाकाम रहा। श्रीलंकाई क्रिकेटरों को ले जाती बस को अचानक निशाना बनाकर हिंसा और दहशत के सौदागरों ने साफ कर दिया है कि वे संबंधों और संस्कृतियों को बढ़ावा देनेवाली किसी भी पहल के दुश्मन हैं। लाहौर हमले से पाकिस्तान क्रिकेट को जो विराट क्षति पहुंचने वाली है, वह समूचे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए चिंताजनक होनी चाहिए। अगर इस उपमहाद्वीप में क्रिकेट लडख़ड़ा गया, तो ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसी कथित क्रिकेट महाशक्तियां भी उसे नवजीवन नहीं दे पाएंगी।
पर विडंबना देखिए कि ऐसी किसी साजिश को निर्मूल करने की प्रतिबद्धता जताने के बजाय पाकिस्तान भारत पर आरोप लगा रहा है। पाक के इस तरह के गैर जिम्मेदार रवैये से एक प्रश्न उठता है कि आखिर पाकिस्तान कब सुधरेगाï? पाकिस्तान ने मुंबई हमले में भी इसी तरह का रवैया अपनाया और अनाप-सनाप बेहुदे बयान देता रहा। शायद पाकिस्तान में बयान देना तो मामूली बात हो गई है कुछ भी बक दो। यदि पाकिस्तान समय रहते नहीं सुधरा तो एक दिन वह ऐसे रास्ते पर खड़ा होगा जहां एक तरफ कुआ और एक तरफ खाई होगी।

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

तनाव भगाओ, ज्यादा नंबर पाओ


हर राज्य में बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं। जैसे-जैसे परीक्षा के दिन करीब आएंगे, वैसे-वैसे स्टूडेंट्स के साथ ही उनके अभिभावकों के तनाव व व्याकुलता में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। लेकिन ध्यान देने की बात है कि कई छात्र ऐसे भी होते हैं, जो परीक्षा के फोबिया से प्रभावित हुए बिना मजबूत मनोबल और धैर्य के साथ तैयारी में जुटे रहते हैं। ऐसा आपके साथ भी हो सकता है, यदि आप व्यवस्थित रणनीति के साथ तैयारी को अंजाम दें। पहली बात है कि बोर्ड परीक्षा को भी सामान्य परीक्षाओं की तरह ही लें। तैयारी के लिए अभी भी आपके पास काफी समय है। कम समय और कम मेहनत के बावजूद यदि आप अपनी पढ़ाई और परीक्षा हाल की बेहतर रणनीति बना सकें, तो बेहतर रिजल्ट हासिल करना कोई कठिन काम नहीं है। जानिए ऐसे ही टिप्स, जो आपको दिला सकते हैं जीत

बनाएं सही रणनीति
अंतिम एक माह की रणनीति बनाने से पहले जरूरी है कि आप अपनी क्षमताओं का सही आकलन करें। यदि आप अभी तक अच्छा प्रदर्शन करते आ रहे हैं, तो परीक्षा से पहले एक-दो सप्ताह का समय उन विषयों को समझने में दें, जिन पर आपकी पकड़ कमजोर है या जिन्हें याद करने में परेशानी होती है। पढ़ाई मेें कमजोर छात्रों के लिए यह समय किसी भी दृष्टि से नए-नए तरीके आजमाने का नहीं है। जिन विषयों पर आपकी पकड़ मजबूत हैं, उन्हें इस तरह तैयार कर लें कि उसमें से पूछे गए सभी प्रकार केप्रश्नों को हल करने में आप सक्षम हों। इसके अतिरिक्त यदि आप बारहवीं की परीक्षा के बाद होने वाली किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रहे हैं, तो फिलहाल उसको २० से ३० प्रतिशत समय दें, बाकी समय बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियों को देना ठीक रहेगा।

पढ़ाई में संतुलन बहुत जरूरी
पढ़ाई में संतुलन बहुत जरूरी है। इसके लिए रिकग्नाइज, रिवाइज, रेस्ट, रिलैक्स और रिएश्योर का ५ आर फार्मूला बहुत उपयोगी है। कैरियर काउंसलर परवीन मल्होत्रा के अनुसार यह समय खुद को व्यवस्थित करने का है। तैयारी को अंतिम रूप देने के लिए आप अपने सभी पाठ्यसामग्री और नोट्स को एक जगह एकत्रित कर लें। यदि आप इसे सही तरीकेसे कर लेते हैं, तो आपका डर ३० से ४० प्रतिशत कम हो जाएगा।

पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन
लगातार पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन भी जरूरी है। ऐसे में अपनी क्षमता केमुताबिक पढ़ाई के बीच थोड़ा-थोड़ा बे्रक भी लेना अच्छा रहता है। इलाहाबाद स्थित ज्वाला देवी विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य चिंतामणि सिंह बताते हैं 'ब्रेक का उद््देश्य दिमाग को आराम देना है। इससे आगे की पढ़ाई के लिए आप खुद को तैयार कर सकते हैं। अमूमन छात्र ब्रेक का सही इस्तेमाल नहीं करते। दोस्तों से फोन पर लंबी बातचीत, देर तक फिल्में देखने या कंप्यूटर पर वीडियो गेम खेलने में ही खुद को थका देते हैं। यदि आप गणित और विज्ञान केस्टूडेंट हैं, तो ब्रेक के समय का उपयोग आप नोट्स और फार्मूलों के रिवीजन में कर सकते हैं। पुस्तकों के अलावा अखबार आदि में दिए गए क्रॉस वर्ड या प्रॉब्लम्स को हल करने से भी दिमाग सक्रिय बनता है। इससे आप कम समय में संभावित हल सोचने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। लेकिन बे्रक की समय-सीमा का भी ध्यान रखना जरूरी है।

अभ्यास पर दें बल
पढ़ाई का कोई लाभ तब तक नहीं है, जब तक कि आप मॉडल सेंपल टेस्ट पेपर का अभ्यास न करें। थ्योरम्स या कंसेप्ट्स को लंबे समय तक स्मृति में बनाए रखने केलिए जरूरी है कि आप उनके एप्लीकेशन संबंधी प्रश्नों को हल करें। काउंसलर जतिन चावला कहते हैं कि अमूमन छात्रों में थ्योरम, फार्मूलों व परिभाषा को बिना समझे याद करने की प्रवृत्ति देखी जाती है। यह आसान तरीका अवश्य है, पर अंतिम समय में भूलने की गुंजाइश बढ़ जाती है। कई बार देखने को मिलता है कि स्टूडेंट किसी कोचिंग सेंटर के नोट्स लेकर उन्हें रटना शुरू कर देते हैं। बेहतर होगा आप पहले विषय को अच्छी तरह समझ लें। खासतौर पर एप्लायड प्रश्नों को हल करने केलिए यह बेहद जरूरी है।

लैंग्वेज और आर्ट पेपर
आट्र्स के विषयों की तैयारी का बेहतर तरीका है कि विषय को कहानी की तरह समझ लिया जाए। यदि पूरा उत्तर लिखने का समय नहीं है, तो रिवीजन के दौरान प्रश्नों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को अवश्य लिखकर देखें। थ्योरी वाले प्रश्नों के उत्तर लिखने से पहले प्रश्न को अच्छी तरह पढ़ लें, उसके अनुरूप ही टू द पॉइंट उत्तर दें। अमूमन स्टूडेंट्स कम अंकों के प्रश्नों के लंबे उत्तर लिखने में समय व्यर्थ कर देते हैं, जिसस आखिरी में उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। पढ़ाई के लिए टाइम टेबल बनाना अच्छा है, पर इसमें परिवर्तन की गुंजाइश भी रखें। मान लीजिए आपने डेढ़ घंटे का समय किसी विषय के रिवीजन को दिया है और वह उतने समय में पूरा नहीं हो पा रहा है, तो आप घबराएं नहीं। जिस विषय को शुरू किया है उसे पूरा अवश्य कर लें।

(क्या करें क्या न करें)
क्या करें
जितना अभ्यास करेंगे, उतनी आसानी से सवाल हल कर पाएंगे। रिवाइज करने के दौरान महत्वपूर्ण बिंदुओं को लिख लें।
पाठ याद करने के लिए केवल रटिए नहीं, बल्कि विषय को समझिए भी।
समय सारिणी बनाएं। जिस विषय में आप कमजोर हैं, उसकी तैयारी में ज्यादा समय दें।
अगर किसी विषय की पढ़ाई में बोरियत होती है, तो तुरंत उसे छोड़कर दूसरा विषय पढ़ें।
पढ़ाई के लिए वही समय चुनें, जिस समय आपको परीक्षा देनी है। इससे आपके शरीर का बायोक्लॉक सेट हो जाएगा।
इस दौरान सुपाच्य भोजन और कम से कम छह घंटे की नींद जरूरी है। तभी आपका शरीर ठीक रहेगा।
अतीत को भूल जाएं। यह समझें कि आप जैसे हैं, उससे बेहतर कर सकते हैं। अच्छे की उम्मीद करें।
हमेशा खुश रहने की कोशिश करें। याद रखें, परीक्षा के लिए अपने को जितना बोझरहित करेंगे, आपके लिए उतना ही अच्छा होगा।
परीक्षा हॉल में शांत और तनावरहित होकर जाएं। ऐसे समय आत्मविश्वास ही आपकी मदद करता है।
आसान सवालों को पहले हल करने की कोशिश करें।
यह जान लें कि खूब पढऩे वाला नहीं, सवालों को सही तरीके से हल करने वाला ही बेहतर प्रदर्शन करता है।

क्या न करें
इन दिनों कठिन व्यायाम से दूर ही रहें। इस समय मामूली चोट भी घातक हो सकती है।
किसी नई किताब या स्टडी मैटीरियल से रिवीजन न करें। इससे आपकी तैयारियों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
अगर साथियों के साथ ग्रुप में तैयारी कर रहे हैं, तो लंबे डिस्कशन से यथासंभव बचने की कोशिश करें।
दूसरों के विचारों से खुद को कतई न आंकें। नकारात्मक भावनाएं या आशंकाएं मन में बिलकुल न आने दें।
तनाव बिलकुल न लें। ध्यान रखें, इस समय किसी भी तरह का मानसिक तनाव शारीरिक चोट की तुलना में अधिक घातक हो सकता है।
परीक्षा से पहले मनोरंजन एकदम बंद न करें। इससे आप चिड़चिड़े हो सकते हैं।
पढ़ाई से ब्रेक लेने के दौरान पढ़ाई के बारे में बिलकुल भी न सोचें। इससे आपका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।
परीक्षा हॉल में जाने के बाद किसी से अनावश्यक बातचीत न करें। ऐसा कुछ न करें, जिससे आपकी एकाग्रता भंग होती है।
कठिन सवालों को पहले हल करने की भूल बिलकुल न करें। इससे आपका समय बरबाद हो सकता है और कुछ सवाल छूट सकते हैं।
परीक्षा हॉल से जल्दी कतई न निकलें। सवाल हल करने के बाद कुछ समय बचता है, तो अपनी पूरी कॉपी जांचें।

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

पीछे की सवारी पर भी हेलमेट की तैयारी


सड़क दुर्घटना में एक आदमी की भी जान जाना उतना दुर्भाग्यपूर्ण है, जितना कि पुलिस की गोली से मरना। सूबे के मुख्यमंत्री की यह बात बिलकुल सही है। हर रोज गैर जिम्मेदार ड्राइव से बहुत लोग भगवान को प्यारे हो जाते है और घरवालों को रोने के लिए छोड़ जाते हैं। लेकिन यदि हम थोड़ी सी सावधानी बरतें तो इससे बचा जा सकता है। ऐसे में सीएम साहब का कहना कि प्रदेश में दुपहिया वाहनों पर पीछे बैठने वालों के लिए भी हेलमेट अनिवार्य होना चाहिए काबिले तारीफ और सुरक्षा के लिए बहुत ही अच्छा कदम है। आज के युवा हेलमेट का प्रयोग सुरक्षा के लिए करने के बजाय चालान से बचने के लिए करते है। हो सकता है कभी-कभार मैंने या आपने भी ऐसी गलती की हो। लेकिन यह बहुत की गलत बात है। बस एक छोटा सा बोझ हमसे हमारी जिंदगी छिन लेता है। तो क्या हमें हेलमेट सिर्फ चालान से बचने के लिए करना चाहिए? नहीं। हेलमेट का प्रयोग हमें हर समय करना चाहिए चाहे हम पास के बाजार में ही क्यों न जा रहे हो। इस मामले में लड़कियों का तो बहुत ही ज्यादा गैर जिम्मेदाराना रवैया है। सुंदर दिखने की चाहत में वो तो इसे शायद बोझ समझती हैं और इसका प्रयोग कम ही करती है। पुलिस वाला भी तो उनसे कुछ नहीं कहता। बस लड़की एक बार मुस्कुरा क्या गई खुश। कोई चालान नहीं जाओ। भई ऐसा क्यों? इस मामले में पुलिस और हम सभी को एक बड़ी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी तभी जाकर ऐसी दुर्घटनाओं पर लगाम लग सकेगी। तो आप सभी से गुजारिश है कि आप जब भी बाहर निकलें हेलमेट लगाने के साथ ही यातायात के नियमों का पालन करें।

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

बोझ नहीं होते मां-बाप


हमारे पड़ोस में शांति ताई रहती थी। उसके तीन बेटे हैं। मुझे अच्छी तरह याद है। तब मैं बहुत छोटा था। लेकिन छोटी-मोटी बातें समझ लेता था। ताई मजदूरी करती, लेकिन तीनों बेटों को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाने की इच्छा थी उसकी। ताई ने अपने एक बेटे की मेडिकल की पढ़ाई के लिए तो अपनी कुछ जमीन तक बेच डाली। हालांकि बेटा डॉक्टर बन गया। शहर में पढऩे गया। बाद में वहीं का होकर रहा गया। किसी शहरी लड़की से ही विवाह रचा लिया और ताई को बिसराकर बेफिक्र शहरी हो गया। दूसरा बेटा मास्टर बन गया और पास ही के एक कस्बे में पत्नी के साथ रहने लगा। गांव में आता-जाता था लेकिन उसे भी ताई की कोई परवाह नहीं। तीसरा बेटा गांव में ही रहता और खेती करता था। शायद ताई के पास तीसरे बेटे को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं रहा।
विवाह से पहले वह ताई की खूब सेवा करता था, लेकिन पत्नी के आते वो भी ताई के प्रति लापरवाह हो गया। यहां तक कि पूरी जमीन की बुवाई भी खुद ही करता है। ताई के लिए कुछ नहीं छोड़ा। गांव वाले कहते कि, 'भाई अपनी मां को दो रोटी नहीं खिला सकता ? ’ उसका जवाब होता, 'रोटी देने के लिए मैं ही हूं। बड़े भाइयों के पास क्यों नहीं चली जाती। ’ कहने को तीन बेटे हैं ताई के लेकिन अभी भी वह बेचारी ही है। पेट भरने के लिए फिर से मजदूरी करती है। एक छोटे से गांव का यह कटु सत्य शहरों में तो एक बड़ी समस्या बन गया है। शहरों में भी शादी होते ही अधिकांश युवा अपने माता-पिता को बोझ समझकर वृद्धाश्रम में छोड़ आते है या फिर उन्हें अपने ही घर में अपने बेटे-बहू के रहमो-करम पर दिन काटने पड़ते हैं। न तो यह परिवर्तन है और नहीं कोई नई समाजिक व्यवस्था। 'बेटा मेरा नाम रोशन करेगा। मेरे बुढ़ापे की लाठी बनेगा। तीर्थ कराएगा। ’ ... और न जाने कितने अरमान अपने दिल में एक मां पालती है, अपनी कोख में पल रहे बेटे के साथ।
बाप बेटे की परवरिश करता है, कुछ ऐसी ही उम्मीदें लिए। लेकिन ये उम्मीदें एक ही झटके में टूट कर बिखर जाती है। बेटा बहू वाला हो जाता है और मां-बाप बेगाने। जरा सोचें, मां-बाप भी स्वार्थी हो गए होते। कोख में मां ने भी बेटे को बोझ समझ लिया होता। बाप एक मांस का पिंड समझ जैसे-तैसे बड़ा कर देता। लेकिन नहीं। आखिर वे मां-बाप हैं। खैर बेटा भी एक दिन बाप बनेगा और बहू मां। पीढ़ी दर पीढ़ी। लेकिन क्या ये 'परंपरा ’ भी पीढ़ी दर पीढ़ी चलेगी? यह कोई मुद्दा नहीं है। दिमाग से नहीं दिल से सोचने की जरूरत है। स्वर्ग तो कि सी ने नहीं देखा, लेकिन हमारे क र्म और संवेदनशून्यता हमारे जीवन को नरक जरूर बना देंगी। एक मां-बाप मिलकर अपनी कई संतानों को पाल सकते हैं, पर वो कई संतानें अपने मां-बाप को नहीं पाल सकते। यही है आज की हकीकत।

बुधवार, 28 जनवरी 2009

लंका में बजा भारत का डंका


आखिर जोश से भरी भारतीय टीम ने श्रीलंका को हराकर साबित कर दिया कि धोनी को जीत की आदत सी पड़ गई है। एक शानदार मुकाबले में धोनी के धुरंदरो ने श्रीलंका के २४६ रनों के जवाब में चार विकेट खोकर ४९वें ओवर में जीत का डंका बजा दिया। आखिरी ओवरों में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए ६१ रन जड़े।
हालांकि भारत को मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के रूप में शुरु आती झटके लगे लेकिन गौतम गंभीर और सुरेश रैना ने गंभीर खेल का माजरा पेश करते हुए टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचाया। इस स्थिति के बाद भारतीय चीते श्रीलंकाई टीम पर हावी हो गए। श्रीलंका की ओर से भी जयसूर्या ने शतक जड़ा पर उनकी यह पारी टीम के काम न आ सकी।
प्रतिभा और जोश से लवरेज भारतीय क्रिकेट टीम में रांगिरी अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम में गए पहले वनडे मुकाबले में श्रीलंका को छह विकेट से हराकर पांच मैचों की श्रृंखला में १-० की बढ़त बना ली। भारत की जीत में सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर (६२ रन, ५ चौके ), सुरेश रैना (५४ रन, ३ चौके, १ छक्का) और कप्तान महेंद्र सिह धोनी (नाबाद ६१ रन, ५ चौके) ने अहम योगदान दिया। टॉस जीतकर पहले क्षेत्ररक्षण करते हुए श्रीलंका को सात विकेट पर २४६ रनों पर सीमित करने के बाद भारतीय खिलाडिय़ों ने बेहतरीन बल्लेबाजी करते हुए ४८.१ ओवरों में चार विकेट खोकर लक्ष्य हासिल कर लिया। भारत की ओर से युवराज सिंह ने भी २३ रन बनाए जबकि रोहित शर्मा ३० गेंदों पर तीन चौकों की मदद से २५ रन बनाकर नाबाद लौटे। भारतीय टीम ने १३ रन के कुल योग पर सचिन (५) का विकेट गंवा दिया था लेकिन इसके बाद गंभीर और रैना ने पहले विकेट के लिए ११३ रन जोड़कर अपनी टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया।
सचिन का विकेट थुसारा को एलबीडब्लू के एक विवादास्पद फैसले पर मिला। अपने पहले अंतरराष्ट्रीय वन-डे मैच में अंपायरिंग कर रहे कुमार धर्मासेना ने सचिन के खिलाफ फैसला लेने में थोड़ा वक्त लगाया और उन्हें आउट दिया। भारत का दूसरा विकेट गंभीर के रूप में गिरा, जो ६८ गेंदों पर पांच चौके लगाने के बाद मुथैया मुरलीधरन की गेंद पर केनडैंबी के हाथों सीमा रेखा के पास लपके गए। इसके बाद रैना और युवराज ने टीम को मजबूती देने की मुहिम शुरू की लेकिन अच्छी लय में दिख रहे रैना ७१ गेंदों पर तीन चौके और एक छक्का लगाने के बाद रन आउट हो गए। उस समय भारत का कुल योग १३७ रन था। युवराज ४० गेंदों पर दोचौके लगाने के बाद फरवेज महरूफ की गेंद पर मुथैया मुरलीधरन के हाथों लपके गए।
हालांकि इसके बाद कप्तान धोनी और शर्मा ने संयम के साथ खेलते हुए अपनी टीम को ११ गेंदें शेष रहते जीत दिला दी। शर्मा और धोनी ने पांचवें विकेट के लिए १०.१ ओवर में ६६ रन जोड़े। इससे पहले, श्रीलंकाई टीम की शुरुआत अच्छी नहीं रही थी। बेहतरीन फार्म में चल रहे सलामी बल्लेबाज तिलकरत्ने दिलशान (०) शून्य के कुल योग पर ही पेवेलियन लौट गए थे। इसके बाद अपने करियर का २८वां शतक लगाने वाले दिग्गज सलामी बल्लेबाज जयसूर्या और विकेटकीपर बल्लेबाज कुमार संगकारा (४४) ने दूसरे विकेट के लिए ११८ रनों की बहुमूल्य साझेदारी निभाकर अपनी टीम को मजबूती दी। दूसरे विकेट के रूप में संगकारा के आउट होने के बाद थिलिना केनडैंबी (१७) ने जयसूर्या के साथ स्कोर को १६९ तक पहुंचाया लेकिन इसी स्कोर पर उन्हें ईशांत शर्मा ने आउट कर दिया।
जयसूर्या ने भारत के खिलाफ पहले मैच में शतकीय पारी के साथ ही एक दिवसीय क्रिकेट में १३००० रन पूरे करने वाले सचिन तेंदुलकर के बाद दुनिया के दूसरे बल्लेबाज बन गए। जयसूर्या ने अपनी १०७ रन की पारी में दस चौके और प्रज्ञान ओझा को एक छक्का जड़ा। उन्होंने १४वें ओवर में इशांत की गेंद पर अपना ३७वां रन बनाने के साथ ही एक दिवसीय क्रिकेट में १३००० रन पूरे कर लिए। जयसूर्या ने ४२८ मैचों में ३२.८३ की औसत से १३०७० रन बना लिए हैं। वहीं तेंदुलकर ने ४२ वनडे मैचों में करीब ४४ की औसत से १६४३२ रन अपने नाम कर लिए हैं। टेस्ट क्रिकेट में भी सर्वाधिक रनों का रिकार्ड भारत के इसी चैम्पियन बल्लेबाज के नाम है। वनडे क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों की सूची में तीसरा नंबर पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंजमाम उल हक का है। भारत के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली और आस्ट्रेलिया के मौजूदा कप्तान रिकी पोंटिंग चौथे और पांचवें स्थान पर हैं।
अपनी पारी के दौरान १३,००० रनों का आंकड़ा पार करने वाले जयसूर्या १७१ के कुल योग पर आउट हुए। उनका विकेट जहीर खान के खाते में गया। उन्होंने अपनी ११४ गेंदों की पारी में १० चौके और एक छक्का जड़ा। मध्यक्रम में हरफनमौला महरूफ (३५) को छोड़कर और कोई बल्लेबाज भारतीय गेंदबाजों के सामने प्रभाव नहीं छोड़ सका। कप्तान माहेला जयवर्धने (११) और चमारा कापूगेदेरा (१५) ने निराश किया जबकि थिलान तुषारा १५ रन बनाकर नाबाद लौटे। भारत की ओर से ईशांत ने तीन विकेट झटके। जहीर और प्रज्ञान ओझा ने भी एक-एक विकेट हासिल किया। श्रीलंका के दो बल्लेबाज रन आउट हुए। श्रृंखला का दूसरा मुकाबला ३० जनवरी को इसी मैदान पर खेला जाएगा।

श्रीलंका ७ विकेट पर २४६ रन
दिलशान रन आउट ०
जयसूर्या का मुनफ बो जहीर १०७
संगकारा का रैना बो ओझा ४४
केन्डेंबे का जहीर बो इशांत १७
महारूफ बो इशांत ३५
जयवर्धने का रोहित बो इशांत ११
कपूगेदरा रन आउट रैना १५
थुसारा नाबाद १२
कुलाशेखरा नाबाद ०
अतिरिक्त ५। विकेट पतन : १-०, २-११८, ३-१६९, ४-१७१, ५-२०४, ६-२२२, ७-२४५। गेंदबाजी : जहीर १०-२-४०-१, मुनफ ५-०-३२-०, इशांत १०-१-५२-३, ओझा १०-०-५२-१, यूसुफ ७-०-३२-०, रैना ४-०-१६-०, रोहित ४-१-२२-०।

भारत ४८.१ ओवर में ४ विकेट पर २४७ रन
गंभीर का केन्डेंबे बो मुरलीधरन ६२
सचिन एलबीडब्लू बो थुसारा ५
रैना रन आउट ५४
युवराज का मुरलीधरन बो महारूफ २३
धोनी नाबाद ६१
रोहित शर्मा नाबाद २५
अतिरिक्त : १७। विकेट पतन : १-१३, २-१२६, ३-१३७, ४-१८१। गेंदबाजी : कुलाशेखरा ७-०-३२-०, थुसारा ८-०-४४-१, महारूफ ८-०-३५-१, मेंडिस १०-०-४७-०, मुरलीधरन १०-०-५२-१, दिलशान ५.१-०-२९-०

मंगलवार, 27 जनवरी 2009

विजय अभियान बरकरार रखने चाहेगा भारत


कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में जोश से भरी टीम इंडिया श्रीलंका के खिलाफ होने वाले पहले वनडे क्रिकेट मैच में जीत के साथ सीरीज का जोरदार आगाज करने के इरादे से उतरेगी। भारतीय टीम पांच मैचों की इस सीरीज में भी गत वर्ष के अपने उसी प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी, जिसमें उसने श्रीलंका को 3—2 से मात दी थी। इस लिहाज से सीरीज के पहले मैच में जीत दर्ज करना जरूरी होगा। हालांकि, भारत ने एक महीने से कोई अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला है। लेकिन, इस दौरान घरेलू क्रिकेट में खेलने से उसके अधिकतर खिलाडी श्रीलंका का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। इस सीरीज का कार्यक्रम ही भारत का पाकिस्तान दौरा रद्द होने के बाद आनन—फानन में बना है। लेकिन, भारत को श्रीलंकाई टीम की मौजूदा फार्म को देखते हुए सावधान रहना होगा। श्रीलंका ने गत दिनों पाकिस्तान और बांग्लादेश के खिलाफ खेली गई दोनों सीरीज में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए जीत हासिल की है।
महेंद्र सिंह धौनी के नेतृत्व में भारत ने खेल के दोनों प्रारूपों में जबर्दस्त फार्म बनाए रखा है। इंग्लैंड पर घरेलू सीरीज में 5-0 से जीत ही उसके फार्म की बानगी पेश करने के लिए काफी है। दूसरी ओर श्रीलंकाई टीम और कप्तान महेला जयवर्धने खराब दौर से गुजर रहे हैं। जिम्बाब्वे जैसी अदना सी टीम के खिलाफ उन्हें संघर्ष करना पड़ा और बांग्लादेश ने ढाका में त्रिकोणीय सीरीज में श्रीलंका को एक मैच में हराया। हालांकि पाकिस्तान में तीन मैचों की वनडे मैचों की सीरीज में पहला मैच हारने के बाद लगातार दो जीत दर्ज करके श्रीलंकाई टीम ने ढर्रे पर लौटने की कोशिश की।
धौनी के लिए चिंता का एकमात्र विषय अनुभवहीन स्पिन आक्रमण होगा क्योंकि ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह चोट के कारण नहीं जा पाए हैं। हैदराबाद के बाएं हाथ के स्पिनर प्रज्ञान ओझा ने अभी तक पांच ही वनडे खेले हैं जबकि सौराष्ट्र के हरफनमौला रविंदर जडेजा पहला ही मैच खेलेंगे। हरभजन की गैर-मौजूदगी से हुए नुकसान का धौनी को इल्म है लेकिन उनके पास सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और युवराज सिंह जैसे कामचलाऊ स्पिनर हैं।
हरभजन पिछले काफी समय से टीम इंडिया में प्रमुख स्पिनर है। लेकिन अब उनके न होने से टीम में प्रज्ञान ओझा और रविंदर जडेजा के रूप में दो स्पिनर हैं। वे हरभजन सिंह की कमी पूरी करने की कोशिश करेंगे। टीम इंडिया में अनियमित गेंदबाज भी हैं जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है। उनके पास खुद को साबित करने का मौका है। भारतीय टीम के बेहतरीन फार्म के बावजूद कोई कोताही नहीं बरतना चाहती है। खासकर श्रीलंका को उसी के घर में हराना आसान नहीं है हालांकि टीम इंडिया ने पिछले साल उसे हराया था।
कागजों पर तो पलड़ा भारत का ही भारी लग रहा है। उसके पास दिल्ली के वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर जैसी सलामी जोड़ी है जो जबर्दस्त फार्म में है। बढ़ती उम्र के बावजूद सचिन तेंदुलकर की रनों की भूख कम नहीं हुई है। वहीं युवराज सिंह की आक्रामक बल्लेबाजी का कोई सानी नहीं। युवाओं में सुरेश रैना और रोहित शर्मा अपनी काबिलियत पहले ही साबित कर चुके हैं। निचले क्रम पर लप्पेबाजी के लिए यूसुफ पठान होंगे। गेंदबाजी में जहीर खान और ईशांत शर्मा नई गेंद से कहर बरपाने का दम रखते हैं। गेंदबाजी के मोर्चे पर श्रीलंका भी कमजोर नहीं है। नुवान कुलशेखरा इस समय आईसीसी वनडे रैंकिंग में दूसरे नंबर पर है।
सभी की नजरें हालांकि उनके स्पिनर आक्रमण पर रहेगी। अनुभवी मुथैया मुरलीधरन को वसीम अकरम के 502 वनडे विकेट के आंकड़े तक पहुंचने के लिए सिर्फ तीन विकेट की जरूरत है। इसके साथ ही वह क्रिकेट के दोनों प्रारूपों में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज बन जाएंगे। दूसरे छोर पर अजंथा मेंडिस के रूप में रहस्यमयी गेंदबाज है।
टीमें:
भारत: महेंद्र सिंह धौनी [कप्तान], गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग, सुरेश रैना, रोहित शर्मा, सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह, रविंदर जडेजा, जहीर खान, प्रवीण कुमार, प्रज्ञान ओझा, मुनफ पटेल, इरफान पठान, यूसुफ पठान और ईशांत शर्मा।


श्रीलंका: महेला जयवर्धने [कप्तान], कुमार संगकारा, सनथ जयसूर्या, उपल थरंगा, चामरा कापूगेदारा, जेहान मुबारक, तिलकरत्ने दिलशान, थिलिना कदांबी, मुथैया मुरलीधरन,अजंथा मेंडिस, फारवेज महरूफ, दिलहारा फर्नाडो, नुवान कुलशेखरा, थिलन थुषारा और एंजेलो मैथ्यूज।

रविवार, 18 जनवरी 2009

अलविदा मैथ्यू

पिछले काफी समय से खराब फॉर्म से जूझ रहे ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज बल्लेबाज मैथ्यू हेडन को आखिर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अलविदा कहना पड़ा। मजबूत कद-काठी और दमदार स्ट्रोक प्ले में माहिर मैथ्यू हेडन अपने चरम पर दुनियाभर के दिग्गज गेंदबाजों की नींद उड़ाते रहे। हेडन ऑस्ट्रेलिया के सबसे कामयाब आेपनर माने जाते हैं।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आगाज

हेडन ने वर्ष १९८४ में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने कैरियर का आगाज किया और अंत भी उसी के खिलाफ १०३वां मैच खेल कर किया। उन्होंने १०३ टेस्ट मैचों में ५०।७३ की औसत से ८६२५ रन बनाए। हेडन ने तीस टेस्ट मैचों में शतक जमाया जिनमें से २२ में ऑस्टे्रलियाई टीम को जीत हासिल हुई।

भारत के खिलाफ सबसे ज्यादा सफल

भारत के खिलाफ हेडन सबसे ज्यादा सफल हुए। उन्होंने भारत के खिलाफ १८ मैचों में छह शतक समेत १८९७ रन बनाए। उनका औसत भारतीय टीम के खिलाफ ५९ का रहा। २००३ में जिम्बाब्वे के खिलाफ ३८० रन बनाकर हेडन ने कुछ दिनों के लिए ही सही टेस्ट मैचों में एक पारी में सर्वाधिक रनों का रिकॉर्ड भी बनाया था। दो विश्वकप खेल चुके हेडन के बल्ले ने एक दिवसीय मैचों में भी खूब धूम मचाई। उन्होंने १६१ वनडे मैचों में ४३।८० की औसत से ६१३३ रन बनाए जिसमें १० शतक शामिल है। अपने कॅरियर में हेडन को एलन बॉर्डर मेडल २००२, टेस्ट प्लेयर ऑफ द ईयर २००२ और विस्डन क्रिकेटर ऑफ द ईयर २००३ पुरस्कार मिला।



खराब फॉर्म के चलते लिया संन्यास!


टेस्ट कैरियर के १०३ टेस्ट मैचों में ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करने वाले हेडन न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के साथ हुई हालिया सीरीज में कुछ खास नहीं कर पाए। इन दोनों टेस्ट सीरीजों में उन्होंने महज १६।५५ की औसत से सिर्फ १४९ रन बनाए। हेडन को शायद इसी का खामियाजा भुगतना पड़ा और उन्हें दक्षिण अफ्रीका के साथ खेली जाने वाली वनडे सीरीज और ट्वेंटी-२० मैच से दरकिनार कर दिया गया। अपने चयन न होने से नाखुश हेडन ने उसी समय संन्यास लेने का संकेत दे दिया था। हांलाकि उन्होंने यह भी कहा था कि यदि उनके साथी यह कह दें कि अब उनके जाने का वक्त आ गया है तो वे तुरंत क्रिकेट छोड़ देंगे लेकिन अभी उनसे एेसा किसी ने नहीं कहा था। हेडन के संन्यास लेने की यह घोषणा निश्चय ही उनका एक श्रेष्ठ लेकिन परिस्थितिजन्य मौलिक निर्णय है। साथ ही उदाहरण भी है उन तमाम क्रिकेट खिलाडिय़ों के लिए जो बार-बार असफल होने के बावजूद पिच पर बने रहने की जद्दोजहद करते रहते हैं। यकीन तो मानना ही होगा कि अब ऑस्ट्रेलिया की एक विस्फोटक बल्लेबाजी पर लंबे समय के लिए बे्रक लग गया है। उम्मीद है खराब फॉर्म से गुजर रहे भारतीय क्रिकेटर भी हेडन से सबक लेते हुए देश की नई प्रतिभाओं को सामने लाने का सुअवसर देंगे।