शनिवार, 27 दिसंबर 2008

हमलावर तेवरों से और ज्यादा बिगड़ेगी बात


मुंबई के आतंकवादी हमलों के बाद चले तेज घटनाक्रम में देश की प्राथमिकता अपने आंतरिक सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने की हो चली है। लेकिन आज भी देश में एक मजबूत राय यह बनी हुई है कि पाकिस्तान पर खुला हमला बोले बगैर या सीमित दायरे के सटीक हवाई हमले में वहां मौजूद आतंक केंद्रों को ध्वस्त किए बगैर आतंकवाद से कारगर तरीके से निपटा नहीं जा सकता। इस राय को देश के ऊपरी वर्ग का खुला समर्थन प्राप्त है, जो आतंकवादियों के हाथों मुंबई के दो आला दर्जे के होटलों में अपने ही जैसे कुलीन लोगों की हत्या इतनी आसानी से कर दिए जाने से अचानक सकते में आ गए हैं। हमारे कथित सुरक्षा विशेषज्ञ इस हमले को भारत का 9/11 साबित करने में लगे हुए हैं। यानी युद्ध की श्रेणी में आने वाली एक ऐसी गतिविधि, जिसका जवाब फौजी कार्रवाई से ही दिया जाना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि जितने योजनाबद्ध तरीके से इस हमले को अंजाम दिया गया, वह यह साबित करने के लिए काफी है कि इसके कर्ता-धर्ता पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज एजंसी से प्रशिक्षित हो कर आए थे।

रविवार, 28 सितंबर 2008

खौफजदा चेहरे



हर धमाके के बाद यही स्थिति बनती है, थोड़ी देर बाद सब सामान्य हो जाता है, बाकी रह जाते हैं बस खौफजदा चेहरे, कभी न थमने वाले आंसू और चीखें.. कब थमेगा यह सिलसिला, कब मिटेगी चेहरों से ये दहशत?

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

लव मैरिज में पैरंट्स का 'रेड सिग्नल'?

आपको किसी से प्यार हो सकता है, लेकिन अपने लवर से शादी का फैसला लेने से पहले आपके लिए अपने पैरंट्स की हां या ना कितनी अहमियत रखती है? हाल ही में माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करने वाले युवकों की मदद के लिए देश की अदालतें आगे आई हैं। कई कपल्स ने सुरक्षा के लिए कोर्ट से गुहार लगाई है और वहां से उन्हें सिक्युरिटी मुहैया भी कराई गई है।
इससे पता चलता है कि कुछ पैरंट्स अभी भी लव मैरिज़ के मामले में लकीर के फकीर हैं। वैसे कई कपल्स ने अपने पैरंट्स के विरोध को नजरअंदाज़ कर अपने प्यार को शादी का जामा पहनाया है। लेकिन ऐसा कोई फैसला लेने से पहले आपका फाइनैंशली और मेंटली स्ट्रॉन्ग होना काफी जरूरी है। टीनएजर स्टूडेंट श्रुति का कहना है, 'अगर मैं किसी दूसरी कास्ट के लड़के से प्यार करती हूं और वह किसी अच्छी फैमिली से है, पढ़ा-लिखा है और अच्छी कमाई कर रहा है। लेकिन मेरे परिवार को दूसरी जाति का होने के कारण हमारी शादी पर ऐतराज है तो भी मैं उस लड़के से शादी जरूर करूंगी। लेकिन अगर फैमिली को कास्ट के अलावा किसी दूसरी चीज पर ऑब्जेक्शन है तो मैं अपने फैसले पर दोबारा जरूर सोचूंगी।'
थिएटर पर्सन मनीष शर्मा का मानना है, 'कुछ पैरंट्स को अपने बच्चों के हरेक काम से कुछ न कुछ प्रॉब्लम होती है।' उनका कहना है, 'कम से कम मेरे पैरंट्स मेरे फैसलों को लेकर काफी कूल रहते हैं। अगर वह मेरी गर्लफ्रेंड को अपनी बहू के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं तो भी मैं उससे शादी कर लूंगा। वक्त सारे घावों को भर देता है।'
मशहूर आईटी कंपनी में बिज़नस डिवेलपमेंट मैनेजर के रूप में काम कर रहे प्रशांत आनंदमूर्ति का मानना है, 'अगर मेरे पैरंट्स को मेरी लव मैरिज़ से कोई ऐतराज है तो भी मैं अपनी पसंद की लड़की से शादी जरूर रचाऊंगा। वह मुझे मेरी ड्रीमगर्ल से शादी करने से रोक नहीं सकते।' उनका कहना है, 'हो सकता है कि उनको मेरी पसंद अच्छी न लगे, लेकिन वह मुझे उसे अपना बनाने से रोक नहीं सकते। मेरे पिता इस मुद्दे पर मुझसे बहस कर सकते हैं, लेकिन मुझ पर कोई दबाव नहीं डाल सकते।' इसके साथ ही उन्होंने यह भी माना, 'बेशक शादी पर्सनल मामला हो, लेकिन अगर लव मैरिज़ से पहले फैमिली का सपोर्ट मिल जाता है तो काफी अच्छा लगता है।'
कई कपल्स एक-दूसरे को चाहते हुए भी पैरंट्स की मर्जी के बगैर शादी नहीं कर पाते। वकील जया कोठारी कहती हैं, 'अगर आप वयस्क हैं तो आप अपने फैसले खुद ले सकते हैं। इंडिया में अधिकतर लड़कियों की शादी 18 से 21 साल की उम्र में हो जाती है, जबकि कुछ लड़कियों की शादी इससे भी छोटी उम्र में हो जाती है। इस उम्र में बहुत से टीनएजर्स अपनी फैमिली के साथ ही रहते हैं। कई बार बच्चों की पसंद उनके पैरंट्स को नहीं जंचती। हम कह सकते हैं, करीब 30 पर्सेन्ट प्रेमी जोड़ों के अलग होने में उनके पैरंट्स की नापसंदगी का योगदान होता है।
मीडिया प्रफेशनल पल्लवी रजत कहती हैं, 'मेरे पैरंट्स को मेरी पसंद के लड़के पर ऐतराज हो सकता है। लेकिन अगर मुझे अपने सपनों के शहजादे पर पूरा भरोसा है तो मैं उससे शादी करने में देर नहीं लगाऊंगी। उस हालत में भी मैं अपने अभिभावकों को निश्चित रूप से मिस करूंगी और उनसे समझौता करने की हर संभव कोशिश करूंगी। जब मेरे माता-पिता मुझे खुश देखेंगे तो वह भी खुश हो जाएंगे।'
मैरिज काउंसलर पीसी मैथ्यूज का मानना है, 'भारत में शादी का मतलब दो परिवारों का एक-दूसरे के नजदीक आना है। अगर कोई बड़ी परेशानी नहीं है तो विवाह के लिए पैरंट्स की मंजूरी जरूर लेनी चाहिए। अगर लड़का-लड़की माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी करते हैं तो उन्हें ज़िंदगी में आने वाली कठिनाइयों से निपटने के लिए मैच्योर होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें पैरंट्स के रजामंद होने का इंतजार करना चाहिए। आखिरकार माता-पिता बच्चों की खुशी ही चाहते हैं।'

बुधवार, 3 सितंबर 2008

रविवार, 27 जुलाई 2008

सावधान! खुशबू से हो सकता है खतरा

हम सुगंधों को जितना जानते हैं, उनसे किसी खतरे का गुमान नहीं होता। इत्र-फुलेल और विदेशी सेंटों के रूप में मिलने वाली सुगंधों से लोगों की सुरुचि का ही अहसास होता है। पर इधर सुगंधों से खतरे की बू आने लगी है।

ये सुगंधें सिर्फ इत्र या सेंट की शीशियों में नहीं हैं, ये हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में काम आने वाली तमाम चीजों में समाई हैं। जैसे कि डियो, कपड़े धोने के साबुन, एयर फ्रेशनर, मॉस्किटो रिपलेंट या खुशबूदार पेन-पेंसिल-कागज़ वगैरह। कुछ अरसा पहले तक घरेलू उपयोग की इन चीज़ों में अलग से कोई सुगंध नहीं डाली जाती थी। पर अब कुछ डिटर्जन्ट, साबुन वगैरह में भी अपनी खास सुगंध होती है। यह मनमोहक महक ज़ाहिर है, उन उत्पादों को इस्तेमाल करने वालों को अच्छी लगती है, जब तक कि उन्हें उससे कोई एलर्जी न हो।

पर साइंटिस्टों ने ऐसी सुगंधों को खतरनाक पाया है। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के विज्ञानियों ने एक व्यापक शोध में पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स, एयर फ्रेशनर्स और लॉन्ड्री प्रॉडक्ट्स के सुगंधित बनाए गए विभिन्न ब्रैंड्स को विषैला और इंसानों की सेहत के लिए खतरनाक माना है। खतरे की वजह इन प्रॉडक्ट्स में सुगंध पैदा करने के लिए इनमें मिलाए गए वे रसायन हैं, जो पहले नहीं इस्तेमाल होते थे- एसिटोन, लाइमोनेन, एसिटिल्डिहाइड और 1,4-डायऑक्सेन आदि जैसे रसायन खुशबू पैदा करते हैं।

हालांकि शोध में इन रसायनों की वजह से सेहत पर पड़ने वाले असर का अध्ययन नहीं किया गया है, पर कुछ दूसरी रिसर्च से पता लगता है कि खुशबूदार उत्पादों का इस्तेमाल करने वाले बहुत से लोग कुछ विशेष किस्म की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों की शिकायत करने लगे हैं। इन परेशानियों की वजह जानना मुश्किल नहीं है। साबुन, डिटर्जन्ट या मच्छर भगाने वाले लिक्विड में पहले से ही तमाम केमिकल होते हैं और उनके खुशबूरहित ब्रैंड्स के इस्तेमाल से भी एलर्जी से लेकर दमा, कैंसर जैसी बीमारियों और न्यूरोलॉजिकल व जिनेटिक विकृतियों तक की आशंका होती है।

जब खुशबू पैदा करने के लिए इन उत्पादों में प्राकृतिक सुगंधों की जगह दूसरे केमिकल मिलाए जाते हैं, तो बीमारियों का खतरा भी और बढ़ जाता है। ऐसे में साइंटिस्टों की सलाह है कि किसी खुशबूदार प्रॉडक्ट की जगह अपनी स्वाभाविक गंध वाले उत्पाद ही खरीदें और जहां तक कमरे को महकाने वाले एयर फ्रेशनर की बात है, तो उसकी खुशबू के मुकाबले कमरे में आती स्वच्छ हवा ज़्यादा बेहतर है, क्योंकि उससे सेहत की सुगंध आती है।